महिलाओं को माहवारी पर छुट्टी की सिफारिश, यह मेडिकल लीव से अलग
स्थायी संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि महिला अफसरों-कर्मचारियों को माहवारी के दौरान छुट्टियां दी जाएं। इसके लिए सरकार 'मासिक धर्म अवकाश नीति' बनाए। इन छुट्टियों के लिए मेडिकल सर्टिफिकेट की शर्त न रखी जाए और न ही इन्हें मेडिकल लीव माना जाए संसदीय समिति की यह पहल बेहद अहम है, क्योंकि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने 'पीरियड लीव' को लेकर दायर याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि यह प्रावधान प्राइवेट सेक्टर में महिलाओं के नौकरी के अवसर कम कर सकता है।
सुशील मोदी की अध्यक्षता वाली
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है। कि माहवारी के दौरान महिलाओं की शारीरिक कमजोरी का सामना करना पड़ता है। भारतीय संविधान और आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक अधिकारों के अंतरराष्ट्रीय अनुबंधों का उल्लेख करते हुए समिति ने कहा है कि 'संविधान के अनुच्छेद 42 में सरकार को 'न्यायपूर्ण व मानवीय' दर्जा हासिल करने के लिए प्रावधान रखने का निर्देश है। इसी तरह अंतरराष्ट्रीय अनुबंध का अनुच्छेद 7 'उचित और अनुकूल' काम करने के लिए हर किसी के अधिकार को कानूनी मान्यता देता है।
4 पति-पत्नी में कोई एक फॉरेन सर्विस में हो तो दूसरे को दिल्ली में पोस्टिंग मिले
समिति ने सिविल सेवा की व्यापक समीक्षा करते हुए पाया कि जब पति-पत्नी में से कोई एक ऑल इंडिया सर्विस व दूसरा फॉरन सर्विस में होता है, तो उन्हें पोस्टिंग को लेकर परेशानी होती है। आईएफएस के पास क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय या राज्यों में शाखा सचिवालय में निर्धारित पदों के अलावा पोस्टिंग का कोई अन्य विकल्प नहीं होता। जबकि ऑल इंडिया सर्विस के अफसरों के पास डेप्यूटेशन का विकल्प होता है। समिति ने सिफारिश की है कि ऑल इंडिया सर्विस के ऐसे अफसरों को एजीएमयूटी कैडर आवंटित करें, ताकि उन्हें दिल्ली में या उसके राज्य में पोस्टिंग मिल सके, जहां उसके पति या पत्नी को तैनाती मिली है।
समिति ने यूपीएससी से पूछा, 50% उम्मीदवार परीक्षा देने क्यूं नहीं पहुंचते?
यूपीएससी अपने बजट का आधे से ज्यादा हिस्सा परीक्षाओं के आयोजन पर खर्च करता है। 2022-23 में 23.39 लाख उम्मीदवारों ने आवेदन किया था, लेकिन 16.82 लाख उम्मीदवार (51.95%) ही परीक्षा देने पहुंचे। 2021-22 में भी 50.51% पहुंचे थे। समिति ने यूपीएससी से पिछले 5 साल में वसूली गई फीस का ब्योरा भी मांगा है। साथ ही यह पूछा है कि आधे उम्मीदवार परीक्षा क्यों नहीं देते ?
4 अहम सिफारिशें, जिन पर सरकार को आखिरी फैसला लेना है
1 हर साल भर्ती होने वाले आईएएस अधिकारियों की संख्या 180 से बढ़ाएं
देश में आईएएस के 1472 पद खाली हैं। 850 पद सीधी भर्ती के हैं, जबकि 622 रिक्तियां प्रमोशन पदों की हैं। सिविल सेवा परीक्षा के जरिए सालाना 180 अफसरों की नियुक्ति होती है। समिति ने कहा कि संख्या बढ़ाई जाए। अभी सेंट्रल डेप्यूटेशन रिजर्व के 1469 आईएएस अफसरों में से सिर्फ 442 केंद्र में सेवा दे रहे हैं।
यूपीएससी सिविल सेवा 2 परीक्षा की अवधि घटाएं, 15 माह ज्यादा हैं
सिविल सेवा परीक्षा के नोटिफिकेशन से लेकर अंतिम नतीजे तक औसतन 15 महीने लगते हैं। समिति का मानना है कि परीक्षा के आयोजन में 6 महीने से ज्यादा का वक्त नहीं लगना चाहिए। कमेटी ने सिफारिश की है कि यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा की आयोजन अवधि को गुणवत्ता से समझौता किए बिना कम करें।
3 प्रीलिम्स की आंसर-की तुरंत प्रकाशित हो, न कि प्रक्रिया पूरी होने पर
समिति ने यूपीएससी से कहा है कि सिविल सेवा के प्री टेस्ट की 'आंसर-की' इसी स्तर की परीक्षा के तुरंत बाद प्रकाशित करे, न कि संपूर्ण प्रक्रिया के बाद फिलहाल यूपीएससी प्री की आंसर-की' भी फाइनल परीक्षा होने के बाद जारी करता है। यूपीएससी को परीक्षा प्रक्रिया में सुधार के लिए व्यापक फीडबैक लेने को कहा गया है।

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