
न्याय दिलाने में कर्नाटक अव्वल, राजस्थान 15वें स्थान पर खिसका
नई दिल्ली. देश में न्याय तक पहुंच प्रदान करने वाले राज्यों में उत्तर भारत के राज्यों की स्थिति बेहद चिंताजनक है। इस मामले में कर्नाटक की स्थिति सबसे बेहतर है। वहीं सबसे अच्छे हालात वाले टॉप पांच में उत्तर भारत का एक मात्र राज्य गुजरात है। यह खुलासा इंडिया जस्टिस रिपोर्ट में किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान 2020 के मुकाबले 5 स्थान खिसक कर 15 वें स्थान पर है। वहीं छत्तीसगढ़ 2 स्थान खिसक कर 7वें से 9वें स्थान पर पहुंच गया है। मध्य प्रदेश में हालात सुधरे हैं। वह 16वें स्थान से 8वें स्थान पर आ गया है। इस मामले में सबसे खराब स्थिति यूपी (18वां स्थान) और पश्चिम बंगाल (17वां स्थान) की है। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट को टाटा ट्रस्ट जारी करता है। इस रिपोर्ट में एक करोड़ से ज्यादा आबादी वाले 18 बड़े और मध्यम आकार के राज्यों में कर्नाटक नंबर एक पर है, वहीं एक करोड़ से कम आबादी वाले सात छोटे राज्यों में सिक्किम की स्थिति सबसे बेहतर है।

न्याय...
अरुणाचल प्रदेश दूसरे और त्रिपुरा तीसरे स्थान पर है। रिपोर्ट में देश की जेलों की स्थिति का भी खुलासा किया गया। इसमें बताया कि जेलों में सिर्फ 22% कैदी ही ऐसे हैं जिन्हें किसी अपराध में दोषी ठहराया गया है।
इसके अलावा 77 फीसदी कैदी विचाराधीन हैं। खास बात यह है कि उत्तर-पूर्व के अधिकतर राज्यों में विचाराधीन कैदियों का आंकड़ा तेजी से बढ़ा है। रिपोर्ट के मुताबिक विचाराधीन कैदियों की संख्या 2010 के बाद सबसे ज्यादा बढ़ी है। 2010 में यह तादाद 2.4 लाख थी, जो 2021 में 4.3 लाख हो गई। रिपोर्ट में कहा है कि विचाराधीन कैदियों को लंबे समय तक हिरासत में रखना इस बात का संकेत है कि केस खत्म होने में काफी समय लग रहा है। इससे प्रशासनिक कामकाज बढ़ रहा है वहीं हर कैदी पर खर्च होने वाला बजट बढ़ता है और इसका असर सरकारी खजाने पर पड़ता है। हाईकोर्ट के हर चार में से एक मामला पांच साल से लंबित... रिपोर्ट में कहा कि 28 प्रदेशों के उच्च न्यायालयों में हर चार में से एक मामला पांच साल से अधिक समय से लंबित है।
इसलिए होती है न्याय मिलने में देरी...रिपोर्ट में दावा किया कि भारत की 140 करोड़ की आबादी के लिए मात्र 20,076 जज हैं। इनमें से भी 22 फीसदी पद खाली ही हैं। वहीं देश हाईकोर्ट में 30 फीसदी से ज्यादा पद खाली हैं। दिसंबर 2022 तक भारत में हर 10 लाख की आबादी पर 19 जज थे और 4.8 करोड़ मामले पेंडिंग थे। गौरतलब है कि 1987 की शुरुआत में विधि आयोग ने सुझाव दिया था कि एक दशक में हर 10 लाख आबादी पर जजों की संख्या 50 होनी चाहिए। न्याय प्रणाली में प्रमुख पदों पर 10 में से एक महिला है।
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