विशेष लेख- अजमेर जिले का नवाचार- चुप्पी तोड़ो खुलकर बोलो
माहवारी को हमारे समाज में आज भी एक टैबू समझा जाता है। खासकर ग्रामीण समाज में ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों में किशोर आयु वर्ग के बालक बालिकाएं शारीरिक और भावनात्मक बदलाव के प्रति शंकित रहते हैं। उन्हें इन बदलावों का कारण समझ में नहीं आता और वे अपनी समस्याओं को किसी से साझा करने में भी झिझकते हैं। यहां तक कि बालिकाओं के साथ होने वाली लैंगिक हिंसा और शारीरिक शोषण की घटनाओं को भी ये शिक्षक और अपने माता-पिता या अभिभावकों के साथ साझा करने में झिझकती हैं, डरती हैं। इस तरह की घटनाओं से बालिकाओं के स्वास्थ्य पर तो असर पड़ता ही है साथ ही मनोवैज्ञानिक रूप से भी उनका विकास रुक जाता है। इसी तरह की समस्या माहवारी को लेकर भी आती है। ग्रामीण समाज में आज भी इस पर खुलकर बात करने में झिझक है। इन सब समस्याओं को देखते हुए और बालिकाओं की इस विषय पर चुप्पी को तोड़ने के लिए अजमेर जिले में एक नवाचार चुप्पी तोड़ो खुलकर बोलो अभियान शुरू किया गया।
बालिकाएं ही नहीं बालक भी शामिल
अजमेर जिले के सरकारी और निजी विद्यालयों में यह नवाचार कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है। इनमें बालिकाएं ही नहीं बालक भी शामिल हैं। बालकों को भी यह बताया जाना जरूरी है कि उनके साथ पढ़ने वाली लड़कियां किस तरह की बातों या टच करने को कंफर्ट नहीं समझतीं।
क्या क्या मुद्दे शामिल हैं नवाचार में
इस नवाचार के तहत अजमेर जिले के राजकीय एवं निजी विद्यालयों में अध्ययनरत छठी से बारहवीं कक्षा के सभी छः लाख से अधिक बालक बालिकाओं और उनके अभिभावकों को किशोरावस्था में आने वाले शारीरिक परिवर्तन तथा माहवारी स्वच्छता जैसे विषयों पर सामान्य और सहज जानकारी दी जा रही है। इस संबंध में बालक बालिकाओं में पाई जाने वाली परंपरागत झिझक को दूर करने तथा बालिकाओं को आत्मरक्षा और सामाजिक सुरक्षा के संबंध में सामान्य परिचय देने के लिए विद्यालय स्तर पर एक अध्यापक विशेषतः महिला अध्यापक को प्रशिक्षित कर तैयार किया जा रहा है। विविध कारणों से शिक्षा से वंचित बालिकाओं को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने, स्कूल में उनके ठहराव और नियमित उपस्थिति के संदर्भ में अभिभावकों और समाज में सहज जागरूकता लाने के साथ-साथ उनकी बारहवीं कक्षा तक की शिक्षा प्राप्ति की सुनिश्चिता तय करने के लिए भी इस नवाचार के तहत विशेष प्रयास किए जा रहे हैं।
यह है तैयारी- राज्य स्तर पर 56 दक्ष प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण
अभियान के लिए राज्य स्तरीय प्रशिक्षण लेने वाले 56 अध्यापकों को दक्ष प्रशिक्षक के रूप में तैयार कर लिया गया है। ये दक्ष प्रशिक्षक ब्लॉक स्तर के प्रत्येक विद्यालय के दो दो अध्यापको को प्रशिक्षण दे रहे हैं। विद्यालय स्तर पर छठी से बारहवीं कक्षा के छात्रों को संबंधित पांच माड्यूल्स की सामग्री पर चर्चा कराई जा रही है। ये प्रशिक्षक बालक बालिकाओं के साथ व्यक्तिगत रूप से घुलमिल कर बातचीत कर रहे हैं. जिससे उनकी शंका और झिझक कम हो सके। विद्यालयों में सप्ताह का एक दिन नो बैग डे घोषित किया गया है। इस दिन के एक कालांश में माडयूल्स का अध्यापन और व्यवहारिक समस्याओं पर चर्चा का आयोजन किया जा रहा है। शुरुआत में यह कार्यक्रम सरकारी विद्यालयों में लागू किया गया अब धीरे-धीरे इसे निजी विद्यालयों में भी चलाने की व्यवस्था की जा रही है।
दिखने लगे हैं बदलाव
इस नवाचार के आरंभ होने के बाद से स्थितियों में बदलाव आने लगा है। चुप्पी तोड़ो खुलकर बोलो कार्यक्रम आरंभ होने से इस सत्र में गत सत्र की तुलना में बालिकाओं की ड्रॉपआउट में 60.82 प्रतिशत की गिरावट आई है जबकि पुनः प्रवेश की दर में 7.25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। बालिकाएं खुलकर बेझिझक माहवारी पर न केवल बातें करने लगी हैं बल्कि सेनेटरी नैपकिन पैकेट्स की मांग भी करने लगी हैं। बालक बालिकाओं की कानूनी जानकारी में बढ़ोतरी हुई है। चाइल्ड राइट्स पर कानूनी विशेषज्ञों की सहायता से साप्ताहिक और पाक्षिक चर्चाएं होने लगी हैं।
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भानू प्रताप/रचना/कविता जोशी
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