दो हजार से अधिक आंगनबाड़ी केन्द्रों के पास नहीं खुद का भवन, किराया भी पूरा नहीं भर रहे
नागौर. जिले में आंगनबाड़ी केन्द्रों पर पोषाहर, शिक्षण एवं अन्य योजनाओं के नाम पर हर महीने करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, जबकि 75 फीसदी आंगनबाड़ी केन्द्रों के पास खुद का भवन नहीं है। नागौर (डीडवाना-कुचामन सहित) जिले के 429 केन्द्र तो किराए के भवन में संचालित हो रहे हैं। उनमें कुछ तो ऐसे हैं जो एक छोटे कमरे में, जहां पोषाहार व अन्य योजनाओं का सामान रखने के बाद बच्चों को बैठाने की भी जगह नहीं है। पड़ताल में यह बात भी सामने आई है कि किराए के भवनों के लिए कार्यकर्ताओं को पूरा किराया भी नहीं दिया जा रहा है, जबकि शहरी क्षेत्र में तीन हजार तक किराया दिया जा सकता है।
गौरतलब है कि आंगनबाड़ी केन्द्रों में छह वर्ष तक के बच्चों को शिक्षण कार्य करवाने के साथ पोषाहार भी दिया जाता है, साथ ही किशोरी बालिकाओं एवं धात्री महिलाओं को पोषाहार दिया जाता है। पिछले करीब दो साल से 10 से 50 साल तक की किशोरियों एवं महिलाओं को सैनेटरी नैपकिन भी आंगनबाड़ी केन्द्रों के माध्यम से दिए जा रहे हैं। इन सब योजनाओं में सरकार हर वर्ष करोड़ों रुपए का बजट खर्च करती है, लेकिन केन्द्रों के खुद के भवन बनाने पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया जा रहा है। विभागीय अधिकारियों के अनुसार 12 लाख रुपए में आंगनबाड़ी केन्द्र का भवन तैयार किया जाता है । इसमें मात्र दो लाख ग्राम पंचायत से लेने के चक्कर में जिले के 2165 केन्द्र आज तक भवन विहीन हैं।
छोटा-सा कमरा है
आंगनबाड़ी केन्द्र के नाम पर हमारे पास छोटा-सा कमरा है, जो पोषाहर, उड़ान योजना के नैपकिन व अन्य सामान ही भरा रहता है। ऐसी स्थिति में न तो बच्चों को नहीं बैठा पाते हैं और न ही हम खुद बैठ पाते हैं। किराया भी विभाग साढ़े 700 रुपए देता है, जबकि मकान मालिक को एक हजार देने पड़ते हैं, ढाई सौ रुपए हमारी जेब से लग रहे हैं- लक्ष्मी पंवार, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, वार्ड संख्या 3
न्यूनतम एक हजार किराया देने का प्रावधान
यह बात सही है कि जिले में दो हजार से अधिक आंगनबाड़ी केन्द्रों के पास खुद के भवन नहीं है। विभागीय गाइडलाइन के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में भवन बनाने के लिए ग्राम पंचायत को दो लाख रुपए की व्यवस्था करनी होती है। यदि ग्राम पंचायत दो लाख रुपए जमा करवा देती है तो विभाग दो लाख रुपए देता है तथा आठ लाख रुपए मनरेगा से जारी करके कुल 12 लाख रुपए से भवन बनाया जाता है, लेकिन सरपंच इसमें रुचि दिखाते नहीं हैं। जहां तक किराया देने की बात है कि ग्रामीण क्षेत्र में एक हजार और शहरी क्षेत्र में अधिकतम तीन हजार रुपए दिए जा सकते हैं, लेकिन न्यूनतम एक हजार तो देते ही हैं, यदि कहीं नहीं मिल रहे हैं तो मैं सीडीपीओ को निर्देशित कर दूंगा।-विजय कुमार, उप निदेशक, महिला एवं बाल विकास विभाग, नागौर
जगह नहीं, इसलिए बच्चे भी नहीं आते
जिले के 1500 से अधिक आंगनबाड़ी केन्द्र ऐसे हैं, जो सरकारी स्कूलों, अन्य राजकीय भवनों, निजी भवनों में संचालित हो रहे हैं। इनमें से कई के पास पर्याप्त जगह नहीं होने के कारण बच्चों को बैठाने की व्यवस्था नहीं है। यानी एक कमरा है, उसमें सामान और फर्नीचर भरा होने से जगह नहीं मिलती। कई जगह बच्चे केवल पोषाहर लेने आते हैं।
फैक्ट फाइल
2873 जिले (नागौर व डीडवाना-कुचामन) में कुल आंगनगाड़ी केन्द्र 309 शहरी क्षेत्र के 2562 ग्रामीण क्षेत्र के 707 स्वयं के भवन में संचालित 1159 स्कूल भवन में संचालित 261 अन्य राजकीय भवनों में 325 नि:शुल्क निजी भवन में संचालित 429 किराए के भवन में

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