सरकारी स्कूलों में बनें अभिभावक संघ, जिम्मेदारों तक पहुंचाएं बच्चों की आवाज
जयपुर. झालावाड़ स्कूल हादसे ने जहां शिक्षा विभाग की लापरवाही उजागर की है। वहीं, अभिभावकों की जागरूकता की कमी को भी दर्शाया है। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के अभिभावक सक्रिय रूप से स्कूल की गतिविधियों में भाग लें तो स्कूल स्तर पर लिए हर निर्णय में उनकी भूमिका हो सकती है। इसके लिए जरूरी है कि स्कूलों में अभिभावक संघों का गठन हो। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे भगवान भरोसे हैं। स्कूल में बिजली, पानी, शिक्षकों की कमी, भवनों का जर्जर हाल जैसी कई समस्याएं होती हैं, जिनका समाधान संस्था प्रधान के स्तर पर नहीं हो सकता। बजट के अभाव में संस्था प्रधान सिर्फ पत्राचार तक ही सीमित रहते हैं। उच्च स्तर पर आवाज तक नहीं उठा पाते। ऐसे में स्कूलों में अभिभावक संघों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती हैं। सरकारी स्कूलों में अगर अभिभावक संघों की ओर से स्कूली समस्याओं को उजागर किया जाए तो उनका समाधान हो सकता है।
तो होगा शिक्षा की गुणवत्ता में भी सुधार
पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी राजेन्द्र शर्मा हंस के अनुसार यदि अभिभावकों को शिक्षा व्यवस्था का हिस्सा बनाया जाए तो न केवल बच्चों की उपस्थिति और शैक्षणिक प्रदर्शन में सुधार के साथ सामुदायिक जागरूकता भी बढ़ेगी। इससे समाज में शिक्षा को लेकर गंभीरता आएगी और स्कूल को एक सामाजिक जिम्मेदारी के रूप में देखा जाएगा। यदि सरकारी स्कूलों में अभिभावक संघों की संरचना प्रभावी ढंग से बनाई जाती है तो यह शिक्षा प्रणाली में पारदर्शिता, सहभागिता और गुणवत्ता लाने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकती है। संघ से अभिभावकों की हर निर्णय में भागीदारी बढ़ेगी।
ऐसे हो गठन, ये काम करे संघ
- प्रत्येक कक्षा से एक विद्यार्थी के अभिभावक को संघ में शामिल किया जाए।
- महीने में एक बार प्राचार्य, शिक्षकों और अभिभावक संघ की बैठक हो।
- अभिभावक महीने में एक बार स्कूल का दौरा करें।
- सरकार अगर बजट जारी नहीं कर रही है तो अभिभावक संघ स्कूल प्रधानाचार्य से मिलकर भामाशाहों की मदद से काम कराएं।
निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों का संघ बना रहता है। इतना ही नहीं, संघ के सदस्य स्कूल की हर निर्णय और गतिविधियों में शामिल होते हैं। ऐसे में स्कूल किसी भी निर्णय को बच्चों पर जबरन नहीं थोप सकते। समय-समय पर अभिभावक संघों की ओर से स्कूलों के गलत निर्णयों का विरोध भी किया जाता है। इन स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई, सुरक्षा, स्वास्थ्य से लेकर हर सुविधा का ध्यान अभिभावक संघों की ओर से रखा जाता है।
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