विद्यालय मर्जिंग पर मचा शोर, लेकिन नीति बच्चों के भविष्य को देने जा रही है जोर
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने राज्य के सरकारी स्कूलों को आपस में मर्ज (विलय) करने का फैसला किया तो इस पर राजनीति और हंगामा शुरू हो गया। विपक्षी नेता इस नीति को छात्रों के विरोध में बताते हुए बयानबाजी करने लगे, शिक्षकों की ओर से भी इस नीति का विरोध जताया जाने लगा, अभिभावक भी चिंतित होने लगे, कोई इस नीति के विरोध में कोर्ट चला गया तो कोई सोशल मीडिया पर इसके विरोध में तमाम पोस्टें किये जा रहा है। लेकिन आप इस नीति का विरोध कर रहे लोगों की बातों को सुनेंगे या उनकी सोशल मीडिया पोस्ट को पढ़ेंगे तो एक बात साफ हो जायेगी कि इन्हें शिक्षा में सुधार से कोई लेना-देना नहीं है। किसी को अपनी राजनीति चमकानी है तो किसी को अपने लिये बरसों से बने सुविधाजनक माहौल से बाहर नहीं निकलना है।जबकि असल में देखा जाये तो योगी सरकार की स्कूलों को मर्ज करने की नीति केवल प्रशासनिक सुधार भर नहीं है, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता, संसाधनों की बेहतर उपलब्धता और विद्यार्थियों के समग्र विकास के दृष्टिकोण से एक दूरदर्शी कदम है। इस नीति के दूरगामी प्रभाव छात्रों और उनके अभिभावकों के हित में साबित होंगे। हम आपको बता दें कि 50 से कम छात्रों वाले स्कूलों को पास के ज्यादा छात्रों वाले विद्यालयों में समायोजित कर शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाना ही इस नीति का मुख्य उद्देश्य है। साथ ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा इस नीति को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज किया जाना इस नीति की वैधता का प्रमाण भी है।
स्कूलों को मर्ज करने की नीति का विरोध करने वालों को समझना चाहिए कि छोटे-छोटे विद्यालयों में अक्सर मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी देखने को मिलती है। पुस्तकालय, प्रयोगशाला, खेल के मैदान, स्मार्ट क्लास, साफ पानी और शौचालय जैसी बुनियादी चीजों का भी अभाव होता है। जब दो या तीन स्कूलों को मर्ज कर एक बड़ा स्कूल बनाया जाएगा, तो संसाधनों का केन्द्रीयकरण होगा। इससे बच्चों को बेहतर शैक्षणिक माहौल, अच्छी बिल्डिंग, खेल-कूद और तकनीकी सुविधाएं प्राप्त होंगी।इसके अलावा, अभी कई स्कूलों में एक या दो अध्यापक ही पूरे विद्यालय का भार उठा रहे हैं। इससे न तो शिक्षक विषय विशेषज्ञ बन पाते हैं और न ही बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलती है। मर्ज किए गए बड़े स्कूलों में विषयवार शिक्षक उपलब्ध कराना सरकार के लिए आसान होगा। इससे गणित, विज्ञान, अंग्रेजी जैसे कठिन विषयों में भी बच्चों को सही मार्गदर्शन मिल सकेगा।साथ ही मर्जिंग के बाद स्कूलों में केवल छात्र संख्या ही नहीं बढ़ेगी, बल्कि प्रतियोगिता, नवाचार और गतिविधियों के अवसर भी बढ़ेंगे। बड़े स्कूलों में सामान्यतः बेहतर शैक्षणिक माहौल होता है, जिससे बच्चों के सीखने का स्तर स्वतः ही ऊपर उठता है। इससे बच्चों की नींव मजबूत होगी और आगे चलकर वे प्रतियोगी परीक्षाओं व कॅरियर में बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगे।
इसके अलावा, ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में कई अभिभावक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में भेजने को मजबूर होते हैं, क्योंकि सरकारी स्कूल में शिक्षा स्तर कमज़ोर होता है। लेकिन जब सरकारी स्कूल ही बेहतर आधारभूत सुविधाओं और योग्य शिक्षकों से सुसज्जित होंगे, तो अभिभावकों का भरोसा इन स्कूलों पर बढ़ेगा। इससे शिक्षा पर उनका अतिरिक्त आर्थिक भार भी घटेगा।इसके अलावा, कम स्कूलों का प्रबंधन करना सरकार और शिक्षा विभाग दोनों के लिए आसान होगा। निरीक्षण, ऑडिट और सुधारात्मक कदम जल्दी और प्रभावी ढंग से लिए जा सकेंगे। इससे विद्यालयों में जवाबदेही बढ़ेगी और भ्रष्टाचार या लापरवाही पर भी अंकुश लगेगा।
शिक्षकों को क्या समझना चाहिए
वहीं स्कूलों की मर्जर पॉलिसी को लेकर उत्तर प्रदेश के शिक्षक संगठनों और शिक्षकों के बीच जो भ्रम और विरोध की स्थिति देखी जा रही है, उससे ऐसा लगता है कि उन्हें इस नीति के उद्देश्यों से भलीभांति अवगत नहीं कराया गया है। इसलिए विशेषकर वे शिक्षक, जिनका स्थानांतरण (ट्रांसफर) दूर-दराज़ क्षेत्रों में होने की आशंका है, इस नीति को अपने भविष्य के लिए खतरा मानकर विरोध कर रहे हैं। लेकिन यदि वे इस नीति के दीर्घकालिक लाभों और शिक्षा व्यवस्था में इसके सकारात्मक प्रभाव को समझेंगे तो वह स्वयं स्वीकार करेंगे कि यह परिवर्तन उनके लिए नुकसान नहीं, बल्कि अवसरों के नए द्वार खोलने वाला है।बहुत से शिक्षक सोच रहे हैं कि स्कूलों के मर्जर से उनके वर्तमान स्कूल बंद हो जाएंगे और उन्हें दूर के विद्यालयों में स्थानांतरित कर दिया जाएगा। वह यह मानते हैं कि इससे उन्हें पारिवारिक, सामाजिक और दैनिक जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। लेकिन ऐसी सोच रखने वाले शिक्षकों को अपना विरोध छोड़ देना चाहिए। उन्हें समझना चाहिए कि आज जिन छोटे स्कूलों में वह काम कर रहे हैं, वहाँ न तो पर्याप्त छात्र हैं और न ही आधारभूत सुविधाएँ। स्कूलों के मर्जर के बाद बड़े, बेहतर संसाधनयुक्त विद्यालयों में तैनाती मिलने से काम करने का वातावरण सुधरेगा। साफ-सुथरी बिल्डिंग, पुस्तकालय, प्रयोगशाला और डिजिटल क्लास जैसे संसाधन उपलब्ध होंगे।इसके अलावा, जहाँ बच्चे अधिक होंगे, वहाँ शिक्षकों की जिम्मेदारी के साथ-साथ उनके अनुभव और दक्षता में भी वृद्धि होगी। ऐसे विद्यालयों में कार्य करते हुए शिक्षक नवाचार, प्रशिक्षण, डिजिटल लर्निंग जैसी योजनाओं से सीधे जुड़ेंगे। इससे उनके कॅरियर में प्रगति के द्वार खुलेंगे।
शिक्षकों को यह भी समझना चाहिए कि स्थानांतरण कोई दंड नहीं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था के संतुलन का माध्यम है। जिन शिक्षकों को स्थानांतरित किया जाएगा, उन्हें भी बेहतर सुविधा वाले विद्यालयों में ही भेजा जाएगा। लंबे समय में यह व्यवस्था स्थिर होगी और अराजकता कम होगी।
देखा जाये तो एक शिक्षक का प्रथम कर्तव्य बच्चों के भविष्य को संवारना है। स्कूल मर्जर से बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलेगी, उनका ड्रॉपआउट रेट घटेगा और वे प्रतिस्पर्धी भविष्य के लिए तैयार होंगे। जब शिक्षा बेहतर होगी, तो शिक्षक का सम्मान भी स्वतः बढ़ेगा। इसके अलावा, छोटे-छोटे विद्यालयों में बिखरी शिक्षक शक्ति को एक जगह लाकर सामूहिक रूप से मजबूत किया जाएगा। इससे शिक्षा का स्तर ऊँचा होगा और शिक्षकों की भूमिका ज्यादा प्रभावशाली बनेगी।देखा जाये तो विद्यालय विलय नीति से डरने या उसका विरोध करने का कोई तर्क नहीं है। बदलाव के हर कदम में प्रारंभिक कठिनाई होती है, लेकिन दूरदर्शिता रखने वाले शिक्षक समझते हैं कि यह नीति बच्चों के भविष्य, शिक्षकों की गरिमा और शिक्षा व्यवस्था की मजबूती के लिए जरूरी है। इसलिए शिक्षकों को चाहिए कि वे डर या भ्रम छोड़कर इस नीति का स्वागत करें और इसे अपने सुनहरे भविष्य के अवसर के रूप में देखें। सकारात्मक सोच के साथ परिवर्तन को अपनाना ही चाहिए क्योंकि यही भविष्य का आधार होता है।
अभिभावकों को क्या समझना चाहिए
अब जरा बात उन अभिभावकों की कर ली जाये जो अपने बच्चे के स्कूल के दूर हो जाने की चिंता से ग्रस्त हैं। देखा जाये तो अभिभावकों के मन में यह चिंता उठना स्वाभाविक ही है कि अब उनके बच्चे का स्कूल पहले से कुछ दूर हो जाएगा। ऐसे अभिभावक सोच रहे हैं कि बच्चों को रोज़ाना ज़्यादा दूरी तय करनी पड़ेगी, जिससे परेशानी बढ़ेगी। लेकिन वक्त की आवश्यकता यह है कि अभिभावकों को दूरी की चिंता छोड़कर अपने बच्चों के भविष्य पर ध्यान देना चाहिए। दरअसल आज के समय में यह देखना अधिक ज़रूरी है कि बच्चा जिस स्कूल में पढ़ रहा है वहाँ उसे कैसी शिक्षा, कैसी सुविधाएं और कैसे अवसर मिल रहे हैं। यदि स्कूल थोड़ा दूर है लेकिन वहाँ अच्छे शिक्षक, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, डिजिटल शिक्षा, खेलकूद और सह-पाठ्यक्रम गतिविधियों के अवसर मिल रहे हैं तो यह दूरी बच्चों के भविष्य के सामने बिल्कुल छोटी बात है।इसके अलावा, निकट का स्कूल अगर सुविधाविहीन, अध्यापकविहीन और कमजोर है, तो वहाँ पढ़ने वाले बच्चों का शैक्षणिक विकास बाधित होगा। जबकि कुछ किलोमीटर दूर का स्कूल अगर बच्चों को आधुनिक शिक्षा, अनुशासन और अवसर दे रहा है, तो वही बच्चा आगे चलकर आत्मनिर्भर और सफल बन पाएगा।
देखा जाये तो हर गाँव में छोटा-छोटा स्कूल खोल देने से शिक्षा मजबूत नहीं होती। एक ऐसा स्कूल जहाँ योग्य शिक्षक, बेहतर पढ़ाई, खेल का मैदान, आधुनिक लैब और स्मार्ट क्लास हो, बच्चों के विकास के लिए ज़्यादा ज़रूरी है। वहाँ बच्चे प्रतिस्पर्धा सीखेंगे, दोस्त बनाएंगे और बड़े सपनों के साथ आगे बढ़ेंगे। अभिभावकों को यह पता होना चाहिए कि ऐसी तमाम देशी-विदेशी रिपोर्टें हैं जिनमें कहा गया है कि भारत में बच्चों की शिक्षण गुणवत्ता एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। कई अध्ययनों से पता चलता है कि भारत में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां बच्चों को अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा तक पहुंचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसलिए अभिभावकों को समझना होगा कि स्कूल की दूरी बढ़ना असली चुनौती नहीं है, असली चुनौती है अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा मिलना।
अभिभावकों को समझना होगा कि आज भले ही बच्चा स्कूल जाने के लिए 2-3 किलोमीटर ज़्यादा चले, लेकिन जब वह अच्छे स्कूल में पढ़कर आत्मविश्वास से आगे बढ़ेगा, तो उसी माता-पिता को गर्व होगा कि उन्होंने अपने बच्चे को बेहतर शिक्षा दिलाने के लिए यह छोटा सा समझौता किया। अभिभावकों को समझना होगा कि आपका फर्ज सिर्फ यह नहीं कि बच्चा घर के नजदीक स्कूल में पढ़े। आपका सबसे बड़ा कर्तव्य है कि उसे ऐसा माहौल दें, जहाँ वह अच्छे शिक्षक, संसाधन और अवसर पाकर अपनी प्रतिभा को निखार सके। इसलिए स्कूल पास हो या दूर, अगर वहाँ पढ़ाई बेहतर है, तो वही सही विकल्प है।दूरी की नहीं, गुणवत्ता की चिंता करें। भविष्य तभी बदलेगा, जब शिक्षा मजबूत होगी। सबको समझना होगा कि उत्तर प्रदेश में विद्यालयों के विलय से शिक्षा का स्तर ऊपर उठेगा। बच्चों को वह सब मिलेगा, जो अभी बड़े शहरों के स्कूलों में मिलता है। अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य को प्राथमिकता दें, न कि केवल दूरी को। इसमें कोई दो राय नहीं कि शिक्षा का हर कदम भविष्य तक जाता हैचाहे रास्ता थोड़ा लंबा क्यों न हो।"
बहरहाल, देखा जाये तो विद्यालयों के विलय की यह नीति केवल ढांचागत सुधार नहीं है, बल्कि शिक्षा के स्तर को सुधारने, बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने और अभिभावकों के आर्थिक-सामाजिक हितों की रक्षा करने की दूरगामी सोच का हिस्सा है। यदि इसे पारदर्शिता से लागू किया गया, तो आने वाले वर्षों में उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूल निजी विद्यालयों की तुलना में कहीं अधिक मजबूत, प्रभावी और लोकप्रिय विकल्प बन सकते हैं।
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