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सोमवार, 1 मई 2023

पसंद की पढ़ाई के विकल्प कम, व्याख्याताओं का भी टोटा, राजकीय महाविद्यालयों में व्याख्याताओं का टोटा, कई कॉलेज तो विद्या सम्बलन के भरोसे

 

पसंद की पढ़ाई के विकल्प कम, व्याख्याताओं का भी टोटा, राजकीय महाविद्यालयों में व्याख्याताओं का टोटा, कई कॉलेज तो विद्या सम्बलन के भरोसे

हनुमानगढ़  राजकीय महाविद्यालयों में पढ़ेसरियों को पसंद के विषयों के अध्ययन का अपेक्षाकृत मौका नहीं मिल रहा है। सरकारी संस्थान होने के कारण निजी की तुलना में शुल्क तो बहुत कम लग रहा है। मगर वैकल्पिक विषयों के चयन के विकल्प सीमित होने एवं पढ़ाने वाले कम होने के कारण विद्यार्थियों को राजकीय महाविद्यालयों का पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है। यह हालात हैं जिले में गत तीन-चार बरस में खोले गए राजकीय महाविद्यालयों के पसंद की पढ़ाई के विकल्प कम होने एवं व्याख्याताओं की कमी से हो रही परेशानी का अभी कोई स्थाई समाधान निकलता नजर नहीं आ रहा है। जिले के कई राजकीय कॉलेज तो पूर्णत: ही विद्या सम्बलन योजना के भरोसे ही संचालित हो रहे हैं। इसका मतलब है कि वहां एक भी व्याख्याता स्थाई रूप से नियुक्त नहीं है।


 केवल हर साल निर्धारित समय के लिए व्याख्याताओं को नियुक्त कर काम चलाया जा रहा है। वहीं अगर संकाय की बात की जाए तो जिले के केवल दो राजकीय महाविद्यालयों को छोड़ दिया जाए तो शेष सभी आधा दर्जन महाविद्यालयों में केवल कला संकाय का ही संचालन किया जा रहा है। उनमें विज्ञान संकाय की स्वीकृति अभी नहीं दी गई है। इसका मतलब है कि राजकीय महाविद्यालयों में स्नातक की शिक्षा अधिकांशत: कला संकाय के विद्यार्थियों के लिए ही उपलब्ध है। शेष को तो निजी कॉलेजों में ही प्रवेश लेना पड़ता है।


ऐसे हैं जिले भर में हालात

भादरा के राजकीय कॉलेज में हिन्दी साहित्य, अंग्रेजी साहित्य, भूगोल, राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र, इतिहास एवं संस्कृत साहित्य शामिल है। हिन्दी साहित्य व अंग्रेजी साहित्य व इतिहास के व्याख्याता कार्यरत नहीं है। केवल चार व्याख्याताओं के भरोसे ही कॉलेज चल रहा है। वहीं नोहर के राजकीय कन्या महाविद्यालय में करीब साढ़े तीन सौ छात्राएं अध्ययनरत हैं तथा हिन्दी साहित्य, अंग्रेजी साहित्य, संस्कृत साहित्य, लोक प्रशासन, राजनीति विज्ञान, भूगोल व इतिहास विषय स्वीकृत है। मगर यहां स्थाई रूप से केवल दो ही विषयों के व्याख्याता नियुक्त हैं। जबकि पांच व्याख्याता विद्या सम्बलन योजना के तहत अस्थाई रूप से लगाकर काम चलाया जा रहा है। रावतसर के राजकीय कॉलेज में हिन्दी साहित्य, अंग्रेजी साहित्य, अर्थशास्त्र, भूगोल, इतिहास, राजनीति विज्ञान तथा समाजशास्त्र विषय स्वीकृत है। यहां एक भी स्थाई व्याख्याता नियुक्त नहीं है। सभी विद्या सम्बल योजना के तहत लगाए गए हैं।


सिर्फ जुबानी जमा खर्च

डीवाईएफआई के प्रदेशाध्यक्ष जगजीतसिंह जग्गीकहते हैं कि असल बात तो यह है कि युवाओं के मुद्दों पर सरकारें जुबानी जमा खर्च तो बहुत करती हैं। किन्तु धरातल पर कोई ज्यादा काम नहीं किया जाता। इसी के चलते स्थिति यह है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए सरकारी कॉलेजों में आवश्यक साधन-सुविधाओं का टोटा रहता है। इसे गंभीरता से लेकर कार्य करने की जरूरत है। केवल बातों से युवाओं का भला नहीं होगा।


चिंतनीय स्थिति

युवाओं को सरकारी महाविद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण एवं सस्ती शिक्षा उपलब्ध कराना तथा उनको रोजगार मुहैया कराना सरकार की जिम्मेदारी है। मगर चिंतनीय यह है कि राज्य व केन्द्र सरकार की प्राथमिकताओं में ही यह शामिल नहीं है कि युवाओं को रोजगार एवं सस्ती शिक्षा उपलब्ध कराई जाए। पहले तो कॉलेज नहीं खोले जाते, यदि खोल दें तो व्याख्याता नहीं लगाए जाते, अन्य साधन-संसाधन उपलब्ध नहीं कराए जाते। - आशीष गौतम, सामाजिक कार्यकर्ता, हनुमानगढ़।

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