
ये कैसा प्रवेशोत्सव, हर कक्षा में बच्चे हुए कम, पिछले साल के मुकाबले करीब 27 हजार घटे
नागौर. सरकारी स्कूलों में करीब दो महीने से चल रहे प्रवेशोत्सव का रंग पूरी तरह फीका रहा। नागौर (डीडवाना-कुचामन) के सरकारी स्कूलों के बच्चों की संख्या में करीब साढ़े छह फीसदी गिरावट है। पिछले साल की तुलना में 26 हजार 893 बच्चे कम हो गए। ना कोई लक्ष्य ना कोई दबाव, उसके बाद भी सरकारी मशीनरी पूरी तरह स्कूलों का नामांकन बढ़ाने में जुटी रही, लेकिन लोगों ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। इस नए सत्र में औसतन हर कक्षा में पिछले साल की तुलना में बच्चे कम हुए हैं।
सूत्रों के अनुसार पिछले साल यानी वर्ष 2022-23 में 3 हजार 27 स्कूलों का कुल नामांकन तीन लाख 68 हजार 674 था जो इस बार वर्ष 2023-24 में तीन लाख 41 हजार 781 रह गया। यानी करीब साढ़े छह प्रतिशत बच्चों की संख्या में कमी आई है। ग्यारहवीं-बारहवीं की कक्षा के छात्र-छात्रा तक पिछले साल के मुकाबले तीन हजार 86 बच्चे कम हैं। अब तक के प्रवेशोत्सव के नामांकन को शामिल करने के बाद भी करीब 27 हजार बच्चों के कम होने से शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारी तक सकते में हैं।
आधार भी निकला कमजोर : असल में सरकारी स्कूलों का प्रवेशोत्सव यानी नामांकन बढ़ने की सीढ़ी पहली से पांचवी कक्षा होती है, इस बार यहीं सारी कवायद सबसे अधिक कमजोर साबित हुई। पिछले साल की तुलना में करीब 18 हजार से भी अधिक बच्चे नामांकन कम रहे। पिछले साल में पहली से पांचवी कक्षा का कुल नामांकन एक लाख 65 हजार 759 था जो इस नए सत्र में एक लाख 47 हजार 31 रह गया। नामांकन बढ़ाने की सबसे अहम कक्षा में ही सरकारी स्कूल फिसड्डी साबित हुए। इन कक्षाओं में नामांकन घटने का रहस्य विभाग के अधिकारियों की भी समझ में नहीं आ रहा। वो इसलिए भी कि ग्रामीण/कस्बे में अधिकांश परिवार में इन कक्षाओं के लिए सरकारी स्कूल को तरजीह दी जाती रही है।
सुधार नहीं तो क्यों चुने
हरीश चौधरी का कहना है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का स्तर अच्छा हो तो क्यों नहीं कराएं एडमिशन पर ऐसा नहीं है। सरकारी स्कूल पर तो वैसे ही पढ़ाई ना कराने का ठप्पा लगा हुआ है। रेखा तिवारी का कहना है कि मेरा बच्चा तो सरकारी स्कूल में पढ़ता है, यह बात सही है कि निजी स्कूलों की तरह थोड़ा स्तर सुधारा जाना चाहिए।
इनका कहना
हाउस होल्ड सर्वे के साथ अभिभावकों को समझाइश की जा रही है। शिक्षक प्रवेशोत्सव में पूरी तरह नामांकन बढ़ाने में जुटे हैं। इसे 25 अगस्त तक बढ़ाया गया है, संभवतया तब तक नामांकन और बढ़ेगा, यह अंतर खत्म होगा।-मुंशी खान, मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी, नागौर।
निजी स्कूलों की चमक भारी
कुछ पेरेंट्स और बच्चों से इस संदर्भ में बात हुई तो सामने आया कि सरकारी स्कूलों का स्टेंडर्ड अब भी उनके मुताबिक सुधर नहीं पाया है। एक तो सरकारी लेबल, उसके बाद वहां शिक्षण व्यवस्था से लोग संतुष्ट नहीं हैं। इसके अलावा अनुशासन, खेल सहित अन्य कारण भी हैं जो सरकारी स्कूलों में जाने से बच्चों को रोक रहा है। अड़ोस-पड़ोस का बच्चा या फिर रिश्तेदारों की देखा-देखी के चलते भी निजी स्कूलों की तरफ बच्चों के साथ पेरेंट्स का रुझान बढ़ रहा है।
सरकारी प्लानिंग इसलिए भी फेल
हर कक्षा में हाल-बेहाल
सूत्रों का कहना है कि इस नए सत्र में करीब 33 हजार 630 नए नामांकन हुए। पिछले सत्र में बारहवीं पास करने वाले विद्यार्थी की संख्या कम भी कर दी जाए तो भी नामांकन बढ़े और संख्या पिछले साल से इतनी कम हो गई, यह किसी को समझ ही नहीं आ रहा। कयास लगाए जा रहे हैं कि नामांकन पिछले साल के अनुरूप तो नहीं हुआ, लेकिन ऐसा भी क्या कि नामांकन इतना कम हो गया? कहा तो यह भी जा रहा है कि इस बार अन्य कक्षाओं में से भी टीसी कटाने वाले विद्यार्थियों की संख्या ज्यादा रही।
हर साल प्रवेशोत्सव के नाम से शोर मचता है। तमाम शिक्षकों को इसमें लगाया भी जाता है, लेकिन छोटी कक्षाओं में सामान्य होने वाले प्रवेश के बजाय कोई अधिक बढ़ोत्तरी नहीं हो पाती। वो इसलिए भी कि शिक्षक ना तो टारगेट पूरा करते हैं ना ही सीबीइओ अथवा अन्य अधिकारी इसे लेकर ज्यादा रुचि दिखाते हैं। इसके साथ पेरेंट्स को समझाने की मशक्कत ही नहीं की जाती, ऐसे में प्रवेशोत्सव फेल हो जाते हैं।
सूत्रों के अनुसार आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले सत्र की तुलना में हर कक्षा में औसतन बच्चे कम हुए हैं। ग्यारहवीं-बारहवीं में जहां तीन हजार से अधिक बच्चे इस बार कम हैं तो नवीं-दसवीं में 262 बच्चों का नामांकन पिछड़ा हुआ है। कक्षा छठी से आठवीं तक के बच्चों में भी पांच हजार से अधिक की कमी हुई है। पिछले साल जहां इन कक्षाओं में 98 हजार 28 बच्चे थे जो अब घटकर 93 हजार 211 रह गए।
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