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गुरुवार, 14 सितंबर 2023

अस्सी फीसदी सरकारी स्कूलों में कक्षाओं के लिए कमरे तक नहीं हैं पूरे ,पचास फीसदी में नहीं है चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, प्रयोगशाला तक में नहीं हैं उपकरण, शिक्षकों के एक चौथाई से अधिक पद खाली



 अस्सी फीसदी सरकारी स्कूलों में कक्षाओं के लिए कमरे तक नहीं हैं पूरे ,पचास फीसदी में नहीं है चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, प्रयोगशाला तक में नहीं हैं उपकरण, शिक्षकों के एक चौथाई से अधिक पद खाली


नागौर. अस्सी फीसदी सरकारी स्कूल में पूरे कक्षा-कक्ष तक नहीं हैं। बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षकों के एक चौथाई से अधिक पद खाली हैं तो करीब पचास फीसदी स्कूलों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी नहीं है। इतना ही नहीं विज्ञान संकाय की अधिकांश प्रयोगशाला में पूरे उपकरण तक नहीं हैं। नागौर (डीडवाना-कुचामन) जिले के करीब तीन हजार सरकारी स्कूलों की कमोबेश यही स्थिति है।


सूत्रों के अनुसार कई बरसों से ग्यारहवीं-बारहवीं कक्षा में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की विज्ञान प्रयोगशाला के नाम से बजट ही नहीं मिल रहा। हालत यह है कि प्रयोगशाला केवल नाम की हैं। कई में तो ना उपकरण पूरे हैं ना ही फर्नीचर। इस बाबत अनगिनत बार जयपुर मुख्यालय के अधिकारियों को पत्र भेजे गए पर इस मद में कोई बजट नहीं मिला। करीब तीन हजार 29 स्कूल में शौचालय की स्थिति भी खासी अच्छी नहीं हैं। अधिकांश स्कूलों में इनकी संख्या दो से अधिक नहीं है। उस पर इनकी साफ-सफाई का काम भी ठीक से नहीं हो रहा। असल में कई स्कूलों में चतुर्थ श्रेणी अथवा स्वीपर का अभाव है।


सूत्र बताते हैं कि नागौर शहर समेत कुछ मुख्यालयों पर कई स्कूल बड़े हैं, उनमें कक्षा-कक्ष सहित अन्य सुविधाएं भी पूरी है पर ऐसा सब जगह नहीं है। कई प्राथमिक स्कूल तो दो-तीन कमरे में ही चल रही है। इसके अलावा भी माध्यमिक-उच्च माध्यमिक स्कूलों में कक्षा-कक्ष के अलावा पुस्तकालय, स्टाफ कक्ष आदि की कमी है।


पढ़ाने वाले तक पूरे नहीं

सूत्रों का कहना है कि इन स्कूलों में पढ़ाने वालों के 25 हजार 792 में से 6 हजार 918 पद खाली हैं। कई स्कूल तो एक-दो शिक्षकों के भरोसे चल रहे हैं। दसवीं-बारहवीं का कोर्स पूरा कराने के लिए शिक्षकों की वैकल्पिक व्यवस्था करनी पड़ रही है। प्राचार्य के 836 स्वीकृत पदों में से 523 पर कार्यरत हैं, वहीं उप प्राचार्य को लेकर तो हालात बहुत खराब हैं। स्वीकृत उप प्राचार्य के 592 में सिर्फ बीस पद पर ही कार्यरत हैं ,जबकि 572 पद खाली पड़े हैं। यही नहीं स्कूली व्याख्याता/शिक्षक के पद भी भारी संख्या में खाली हैं। हिन्दी के 584 में से 104 तो अंग्रेजी के 197 में से 47 पद खाली चल रहे हैं। इतिहास, भूगोल के साथ राजनीति विज्ञान विषय के शिक्षक भी काफी कम हैं। राजनीति विज्ञान के 70, इतिहास के 97 तो भूगोल के 93 पद खाली हैं। शारीरिक शिक्षा के भी पद खाली चल रहे हैं, प्रबोधक हों या शिक्षाकर्मी, पदों का टोटा बना हुआ है।


सरकार तक भामाशाहों के भरोसे

सूत्र बताते हैं कि बरसों हो गए सरकार कोई भी रही हो सरकारी स्कूलों पर खर्च करने से हाथ खींचती रही। राज्य सरकार ने शिक्षा अधिकारियों को यह निर्देश दे रखे हैं कि स्थानीय भामाशाहों की मदद से सरकारी स्कूल विकसित किए जाएं। अब आलम यह है कि बिल्डिंग/जमीन किसीकी तो पंखा/फर्नीचर किसी से, यहां तक कि वाटर कूलर समेत छोटे-मोटे कार्यक्रम तक के लिए सरकार की ओर से कोई बजट नहीं मिल रहा। यह सब भामाशाहों को करना पड़ रहा है।


शिक्षकों की कमी को शीघ्र दूर किया जा रहा है। संभवतया अगले महीने तक यह कमी पूरी हो जाएगी। कुछ स्कूलों में कक्षा कक्ष समेत कुछ समस्याएं हैं, उन्हें दिखवाते हैं।-मुंशी खान, मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी नागौर

अस्सी फीसदी सरकारी स्कूलों में कक्षाओं के लिए कमरे तक नहीं हैं पूरे ,पचास फीसदी में नहीं है चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, प्रयोगशाला तक में नहीं हैं उपकरण, शिक्षकों के एक चौथाई से अधिक पद खाली Rating: 4.5 Diposkan Oleh: UP BASIC NEWS

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